Sunday, May 29, 2011

जब आँख खुली तो बिखर गये

जब आँख खुली तो बिखर गये
जो सपने देखे कल हमने 
क्या उनसे शिकायत,शिकवे -गिला 
जो चले गये  अपने रस्ते 

(१)  वो पीपल,पनघट ,वो गलियां 
सब सूने सूने लगते हें 
जहाँ काटे थे इस जीवन के 
हमने कुछ दिन हँसते हँसते  जब आँख खुली......

(२)  ऐ काश अगर वो मिल जाये,
तो उनसे ये फ़रियाद करें
वो प्रेम,मुहोब्बत, वो यादें
ले जाओ ज़रा चलते चलते जब आँख खुली......

(३)
अंजाम मुहोब्बत का ऐसा,
कब कोई सोचा करता है
ये तो खेल नसीबों का
अब कहते हें अपने मन से जब आँख खुली......

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